भारत में शरणार्थी कैसे बनी एक बड़ी समस्‍या? जानें- किन देशों के नागर‍िकों ने ली है देश में शरण है, क्‍या है कानून

Binod Sahu
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[caption id="attachment_265" align="alignnone" width="300"]भारत में शरणार्थी कैसे बनी एक बड़ी समस्‍या? जानें- किन देशों के नागर‍िकों ने ली है देश में शरण है, क्‍या है कानून  [/caption]

शरणार्थी की समस्‍या एक वैश्विक समस्‍या है। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत में शरणार्थियों की क्‍या स्थिति है। भारत जैसे एक महान लोकतांत्रिक देश में शरणार्थियों की क्‍या दशा है। शरणार्थियों के हितों के मद्देनजर अब तक क्‍या कदम उठाए गए हैं। भारत में किन देशों के शरणार्थियों ने पनाह ले रखी है। भारत में शरणार्थी और प्रवासियों की समस्‍या को लेकर क्‍यों एक बड़ी खाई उत्‍पन्‍न है। भारत में शरणार्थी समस्‍या कैसे देश की संप्रभुता और सुरक्षा के लिए बड़ा संकट है। इसको लेकर भारत के समक्ष क्‍या है बड़ी चुनौती। इन तमाम मसलों पर विशेषज्ञों की क्‍या राय है।

1.विशेषज्ञों की क्‍या राय है।


 

1- प्रो अभिषेक प्रताप सिंह का कहना है कि प्रवासियों की कोई अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर स्‍वीकृत कानूनी परिभाषा नहीं है। प्रवासियों को अपने मूल देश से बाहर रहने वाले लोगों के रूप में समझा जा सकता है, जो शरण चाहने वाले या शरणार्थी नहीं हैं। उन्‍होंने कहा कि मिसाल के तौर पर कुछ प्रवासी रोजी-रोटी या अध्‍ययन-अध्‍यापन को लेकर अपना देश छोड़ देते हैं। ऐसे लोग गरीबी, राजनीतिक अशांति, सामूहिक हिंसा, प्राकृतिक आपदाओं या अन्य गंभीर परिस्थितियों के कारण अपना देश नहीं छोड़ते। शरण चाहने वाला वह व्‍यक्ति होता है जो अपना देश छोड़ चुका है। वह दूसरे देश में उत्‍पीड़न और गंभीर मानवाधिकारों के उल्‍लंघन से सुरक्षा की मांग करता है। उन्‍होंने कहा कि हालांकि, इन्‍हें अभी तक कानूनी रूप से शरणार्थी के रूप में मान्‍यता नहीं मिली है। ऐसे लोग अपने शरण के दावे पर निर्णय की प्रतिक्षा कर रहे हैं।

 

2- प्रो अभिषेक ने कहा कि एक शरणार्थी वह व्‍यक्ति है, जिसने मानवाधिकार के उल्‍लंघन तथा उत्‍पीड़‍ित होने के भय से अपने देश से पलायन किया है। उन्‍होंने कहा कि उनकी सुरक्षा और जीवन का जोखिम इतना अधिक बढ़ जाता है कि उन्‍हें अपने देश से बाहर जाने और सुरक्षा की तलाश करने के अलावा कोई विकल्‍प नजर नहीं आता है। उन्‍होंने कहा कि यह इसलिए होता है क्‍योंकि उनके देश की सरकार उनकी सुरक्षा करने में अक्षम होती है। उन्‍होंने जोर देकर कहा कि शरणार्थियों को अंतरराष्‍ट्रीय संरक्षण का अधिकार है।

 

3- उन्‍होंने कहा कि जहां तक भारत का सवाल है यह महादेश एक बड़ी संख्‍या में शरणार्थियों की समस्‍या से जूझ रहा है। उन्‍होंने कहा भारत में शरणार्थियों के लिए एक व्‍यवाहारिक दृष्टिकोण एवं कानून की जरूरत है। प्रो अभिषेक ने कहा कि राष्‍ट्रीय शरणार्थी कानून में भारत की सुरक्षा चिंताओं पर भी विशेष ध्‍यान देने की जरूरत है। प्रो अभिषेक ने कहा कि यह भी नहीं होना चाहिए कि राष्‍ट्रीय सुरक्षा चिंता की आड़ में किसी का निर्वासन किया जाए या हिरासत में लिया जाए। उन्‍होंने कहा कि भारत में शरणार्थी आबादी का बड़ा हिस्सा श्रीलंका, तिब्बत, म्यांमार और अफगानिस्तान से आए लोगों का है। तिब्बती और श्रीलंकाई शरणार्थियों को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है। उन्हें सरकार द्वारा तैयार की गई विशिष्ट नीतियों एवं नियमों के माध्यम से सुरक्षा व सहायता प्रदान की जाती है।

 

2.आखिर भारत में अब तक


शरणार्थियों पर कानून क्यों नहीं


बना


 

सवाल यह है कि भारत में अब तक एक ठोस शरणार्थियों पर कानून क्‍यों नहीं बन सका। हाल के दिनों में पड़ोसी देशों के कई नागरिक राज्‍य उत्‍पीड़न के कारण नहीं बल्कि बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में अवैध रूप से भारत आए हैं। भारत में अधिकतर बहस शरणार्थियों के बजाए अवैध प्रवासियों को लेकर होती है। भारत में यह स्थिति काफी जटिल है। एक स्थिति में सामान्‍यत: दोनों श्रेणियों को एकीकृत कर दिया जाता है। अस्‍पष्‍ट कानून के चलते भारत के लिए शरणार्थियों के प्रवासन पर निर्णय लेने के लिए तमाम विकल्‍प खुले हैं। भारत शरणार्थियों के किसी भी समूह को अवैध प्रवासी घोषित कर सकती है। उदाहरण के लिए यूएनएचसीआर के सत्यापन के बावजूद भारत सरकार द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए विदेशी अधिनियम या भारतीय पासपोर्ट अधिनियम के प्रयोग का निर्णय लिया गया।

 

 3. क्या है कानूनी स्थिति


 

भारत में शरणार्थियों को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 20 (अपराधों की सज़ा के संबंध में संरक्षण) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत अधिकारों के हकदार हैं। इसके अलावा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 से मुसलमानों को बाहर रखा गया है। यह केवल हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी, सिख तथा बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान से आए बौद्ध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है। इसके वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और 1967 प्रोटोकॉल के पक्ष में नहीं होने के बावजूद भारत में शरणार्थियों की बहुत बड़ी संख्या निवास करती है। भारत में विदेशी लोगों और संस्कृति को आत्मसात करने की एक नैतिक परंपरा है।

 

 

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