रामायण कथा | लंका कांड ( भाग - 4 ) | Lanka Kaand (bhaag-4)

Binod Sahu
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श्री राम और लक्ष्मण को मेघनाध अपने नागपाश में बांध देता है तो हनुमान जी गरुड़ राज को लेकर आते हैं और गरुड़ राज श्री राम और लक्ष्मण मुक्त कराते हैं। अगले दिन यह सुनकर मेघनाध को क्रोध आ जाता है और वो फिर से युद्ध करने के लिए आता है।

लक्ष्मण और मेघनाध में युद्ध छिड़ जाता है और इंद्रजीत अपनी माया का इस्तेमाल करते हुए लक्ष्मण पर बरछी से वर कर देता है जिस से लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं। लक्ष्मण के मूर्छित होते ही श्री राम को उसकी चिंता होने लगती है और श्री राम व्याकुल होते हुए अपने अनुज को जगाने की कोशिश करते हैं। विभीषण हनुमान जी को लंका के वैद्य सुषेण को लाने के लिए कहते हैं तो हनुमान जी लंका में जाकर वैद्य सुषेण को उनके घर के साथ ही उठा लाते हैं।





वैद्य सुषेण लंका के शत्रु की मदद करने से मना कर देते हैं तो श्री राम उनसे विनती करते हुए उन्हें उनका कर्तव्य याद दिलाते हैं। वैद्य सुषेण लक्ष्मण का उपचार करने के लिए संजीवनी बूटी माँगते हैं जिसे हिमालय पर्वत से सवेरा होने से पहले लाना होगा तभी लक्ष्मण के प्राण बच सकते हैं। हनुमान जी संजीवनी बूटी लाने के लिए निकल पड़ते हैं। रावण को जब यह पता चलता है तो वह अपने मित्र कालनेमी को हनुमान जी को वहीं रोकने के लिए भेज देता है




ताकि वो समय पर संजीवनी बूटी ना ला सके। हनुमान जी को कालनेमी एक ब्राह्मण बनकर अपनी बातों में फँसा लेता है और उन्हें मारने के लिए नदी में नहाने के लिए भेजता है जहां एक मगरमच्छ उनपर हमला कर देता है। हनुमान जी उस मगरमच्छ को मार देते हैं तो उसमें से एक देवी प्रकट होती हैं और वो उन्हें कालनेमी की साज़िश के बारे में बता देती हैं

को वो कोई ब्राह्मण नहीं है वह एक राक्षस है। हनुमान जी कालनेमी के पास जाते हैं और उसे मार देते हैं। हनुमान जी से संजीवनी लेने पर्वत पर जाते हैं तो उन्हें समझ नहीं आता की कौन साई संजीवनी बूटी है तो हनुमान जी अपना विशाल रूप धारण कर लेते हैं और पूरे पर्वत को उठा कर उड़ चलते हैं। रास्ते में उन्हें अयोध्या के ऊपर से जाते हुए भरत देख लेता है और अपनी सीमा की सुरक्षा के बारे में सोचते हुए उन्हें राक्षस समझ कर बाण चला देता है





जिस से हनुमान घायल होकर नीचे गिर जाते हैं और उनके मुख से श्री राम नाम निकलता है जिसे सुनकर भरत उनके पास दौड़ कर जाता है और उन्हें होश में लाकर पूछता अहि की वो कौन है तो हनुमान जी उन्हें अपना परिचय देते हुए सारी बात बताते हैं। हनुमान जी से श्री राम की व्यथा सुनकर भरत भावुक हो जाते हैं और हनुमान जी को कहते हैं

कीवो जल्दी से श्री राम के पास जाए और उनके छोटे भाई लक्ष्मण के प्राण बचाए। हनुमान जी फिर से पर्वत उठा कर चल पड़ते हैं और साम्य रहते वहाँ पहुँच कर लक्ष्मण की जान बचा लेते हैं। लक्ष्मण के प्राण बचाने पर श्री राम हनुमान जी और वैद्य सुषेण को धन्यवाद करते हैं।





लक्ष्मण ठीक होते ही मेघनाध को मारने के लिए उत्सुक हो जाता है तो विभीषण उन्हें बताता है की मेघनाध अपनी शक्तियों बढ़ाने और एक विजय रथ पाने के लिए अपनी कुल देवी निकुंभला की पूजा एक गुप्त स्थान पर कर रहा हैं और यदि वह याग पूर्ण हो गया तो उसे हराना नामुमकिन हो जाएगा।

लक्ष्मण अपनी सेना को साथ लेकर विभीषण के साथ मेघनाध के यज्ञ के साथ पर पहुँच जाते हैं और उसका यज्ञ नष्ट कर देते हैं। मेघनाध और लक्ष्मण में युद्ध शुरू हो जाता है लेकिन इस बार लक्ष्मण मेघनाध पर पूरी शक्ति से आक्रमण करता है। मेघनाध का कोई भी अस्त्र लक्ष्मण का कुछ भी नहीं बिगाड़ पता तो मेघनाध वहाँ से भाग जाता है।

 

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