Saudi Arabia hints at Pakistan bailout: पाकिस्तान एक बार फिर डिफॉल्ट होने की कगार पर है. विदेशी मुद्रा भंडार 5 अरब डॉलर से कम होने के कारण इकॉनमी के जानकारों का मानना है कि इतने पैसे से वो बस 3 हफ्ते तक अपना काम चला सकता है. ऐसे में वो एक बार फिर से सऊदी अरब की ओर आंखे फाड़कर देख रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि सऊदी पहले भी कई बार पाक की दम तोड़ती अर्थव्यवस्था को बर्बाद होने से बचा चुका है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिरकार सऊदी अरब बार-बार ऐसा क्यों करता है?
शहबाज शरीफ पिछले कुछ महीनों में दो बार सऊदी की खाक छान चुके हैं. उनकी फौज के जनरल भी वहां हाजिरी लगाने का मौका नहीं चूकते. इससे पहले के लगभग पाकिस्तानी हुक्मरान और फौजी जनरल भी सेम पैटर्न पर चलते आए हैं. क्या इसी जी-हुजूरी की वजह से सऊदी अरब तरस खाकर पाकिस्तान की डूबती नैया को पार लगा देता है.
सऊदी अरब दिखाएगा दरियादिली?
यूं तो अपना खर्चा-पानी चलाने के लिए पाकिस्तानी हुक्मरान कटोरा लिए सऊदी के अलावा चीन और आईएमएफ (IMF) के चक्कर लगाते रहते हैं. पाकिस्तान 1980 से लेकर 2022 तक करीब 14 बार IMF जा चुका है, पर शायद पाकिस्तानियों को लगता है कि सऊदी की बात ही कुछ अलग है.
सऊदी और पाकिस्तान की दोस्ती
पाकिस्तान को सऊदी से मदद मिलने का लंबा और पुराना रिकार्ड रहा है. पाकिस्तानी मदरसों को होने वाली फंडिंग हो या 1990 के दशक में परमाणु परीक्षण के बाद लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बाद की गई मदद सब पाकिस्तान के ऊपर लुटाई गई खैरात समझी जाती है.
वहाबी सुन्नी मुस्लिमों का खेल!
सऊदी अरब की शुरुआत से पाकिस्तान में दिलचस्पी रही है. 1980 के दशक में सऊदी अरब ने पाकिस्तान में सैकड़ों मदरसे बनाए, इस तरह वहां वहाबी सुन्नी इस्लाम को बढ़ावा देने की शुरुआत हुई, क्योंकि सऊदी में वहाबी सुन्नी मुसलमानों का वर्चस्व है. वहीं दूसरी ओर ये भी माना जाता है कि सऊदी अरब ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति से डरा हुआ था. क्योंकि ईरान शिया मुस्लिम बहुल देश है. ऐसे में सऊदी की फंडिंग से पाकिस्तान में वहाबी सुन्नी इस्लाम तेजी से बढ़ा और भारतीय उपमहाद्वीप में कट्टरपंथ मजबूत हुआ जबकि उदार सूफी इस्लाम की पकड़ कुछ कमजोर हुई.
सऊदी को सेफ्टी की चिंता
हालांकि सऊदी अरब के काफी समय तक अमेरिका से रिश्ते अच्छे रहे हैं. इस दौरान उसने अमेरिकी हथियार हासिल किए. हालांकि ये सौदा उसे महंगा पड़ता था. इसके बाद शायद सऊदी के शासकों को लगा हो कि परमाणु ताकत हासिल कर चुका पाकिस्तान उसके ज्यादा काम आ सकता है. पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता ने अरब न्यूज को दिए इंटरव्यू में कहा था कि सऊदी अरब के भाइयों के साथ हम हमेशा खड़े रहेंगे. वहीं इमरान खान ने भी अपने एक साक्षात्कार में कहा था, 'मक्का और मदीना सऊदी अरब में हैं. मैं यकीन के साथ कहता हूं कि अगर सऊदी पर कोई खतरा आया तो हमारी फौज ढाल बनकर आगे खड़ी होगी.' दरअसल सऊदी की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान काफी अहम है. हालांकि कहा तो ये जाता है कि पाकिस्तान सऊदी अरब की सुरक्षा से ज्यादा वहां के शाही परिवार की सुरक्षा करता है क्योंकि सऊदी अरब जिस इलाके में है, वहां के आसपास के देशों में राजनीतिक अस्थिरता और इस्लामिक अतिवाद आम बात है.
इमरान खान ने पीएम बनने के बाद तुर्की को अहमियत देते हुए नई गणितीय समीकरण शुरू किए थे लेकिन सऊदी की सख्ती के चलते उसे इस्लामिक देशों की अगुवाई करने वाली अपनी स्कीम ठंडे बस्ते में डालनी पड़ी था. ऐसे में जब इमरान की रुखसती हो चुकी है. शरीफ की फैमिली की केमिस्ट्री सऊदी अरब के शाही परिवार से एकदम पर्फेक्ट मैच करती है. वहीं वर्तमान समय में बनी तात्कालिक भू राजनीतिक स्थितियों की वजह से एक बार फिर सऊदी अरब के लिए पाकिस्तान जरूरी हो गया है. क्योंकि ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम आगे बढ़ा रहा है. अमेरिका भी मध्य-पूर्व से अपनी सैन्य मौजूदगी कम कर रहा है. इसी वजह से एक बार फिर से सऊदी अरब या को पाकिस्तान को तीन अरब डॉलर का नया कर्ज दे सकता है या अपने पुराने कर्जे को चुकाने की मियाद बढ़ा देगा, ताकि पाकिस्तान को इस दलदल से निकलने में कुछ आसानी हो सके.