Is China border deal huge victory for India? | The Chanakya Dialogues | Major Gaurav Arya

Binod Sahu
By -
0
चीन ने कहा है कि वह पुरानी पेट्रोलिंग पॉइंट्स पर भारत के साथ संपर्क कर रहा है और पहले की स्थिति में वापस लौटने का संकेत दिया है। प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया है कि भारत की एक इंच जमीन भी चीन के कब्जे में नहीं है, इसके बावजूद इस कथन के पीछे एक विरोधाभास नजर आता है क्योंकि 2020 में भारत के वीर सैनिकों की शहादत हुई थी। यह पॉलिटिकल ड्रामा दिखाता है कि कैसे भारत ने पाकिस्तान और चीन के साथ रिश्तों में संतुलन बनाए रखा है। इस संदर्भ में, ब्रिक्स समिट का आयोजन भी महत्वपूर्ण है, जहां भारत अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ मिलकर अपनी भूमिका को मजबूत कर रहा है। पाकिस्तान की ओर से ब्रिक्स में शामिल होने की मांग भी हास्यास्पद है, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था में स्थिरता नहीं है।

चीन के दावों के बीच, भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सख्त रुख अपनाया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, चीन के साथ जो संदेश व समझौतें हुए हैं, उनके जरिए भारत अपनी स्थिति को स्पष्टता से पेश करने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, यह स्थिति हमेशा स्पष्ट नहीं होती, जिस कारण राजनीतिक नेताओं और विशेषज्ञों के बीच चर्चा होती रहती है। पुराने पेट्रोलिंग पॉइंट्स पर जाने की घोषणाओं के साथ-साथ, यह भी देखा जा रहा है कि क्या भारतीय सैनिक पहले जैसे ही गश्त कर सकेंगे या नहीं, और क्या बफर जोन अब भी सक्रिय रहेगा। 

गलवान की घटना के बारे में भी सवाल उठ रहे हैं, और इस पर चर्चा की जा रही है कि वहां भारतीय सैनिकों ने किस तरह से कार्रवाई की थी। यह भी प्रतित होता है कि चीन ने उन क्षेत्रों में कब्जा करने की पूरी कोशिश की थी, जिस पर भारत का हक था। यहां पर समग्र सुरक्षा स्थिति की संवेदनशीलता भी है और इसे सही तरीके से संभालने की आवश्यकता है। आगे का घटनाक्रम देखना होगा कि क्या स्थिति में कोई बदलाव आता है या नहीं।

### Chapter

भारतीय सेना और चीन के पीएलए के बीच की स्थिति को समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) की वास्तविकता पर ध्यान दें। यह कोई निश्चित सीमा नहीं है, बल्कि दोनों देशों की अलग-अलग धारणाओं पर आधारित है। भारत और चीन दोनों ने अपनी-अपनी सीमाएं निर्धारित की हैं, लेकिन अभी तक किसी भी प्रकार का औपचारिक समझौता नहीं हुआ है। अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र को लेकर चीन का दावा है कि यह उनका क्षेत्र है, और यह क्षेत्र विवादों का केंद्र रहा है, जैसे तवांग और डोकलाम।

गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों की शहादत ने भारत-चीन संबंधों को एक नया मोड़ दिया। चाइनीज सरकार ने घटना के दौरान अपने नुकसान को मानने में हिचकिचाहट दिखाई और मुख्यमंत्री स्तर पर भी इस पर प्रतिक्रिया नहीं दी। भारतीय प्रधानमंत्री ने संसद में यह स्पष्ट किया कि देश की एक इंच भी जमीन नहीं दी गई, जबकि फिर भी 20 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए, जो एक जटिल स्थिति को दर्शाता है। 

भारत की सुरक्षा नीति की जड़ें 1962 की लड़ाई में हैं, जब भारत ने लगभग 38,000 स्क्वायर किलोमीटर भूमि खो दी थी, जो अब चीन के कब्जे में है। उस समय की फॉरवर्ड पॉलिसी को लेकर भी आलोचनाएं हुई थीं। भारत में एक मजबूत सेना की आवश्यकता को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति ने कई मुद्दों को जन्म दिया। भारतीय शासन ने इतिहास से कुछ भी सीखने का प्रयास नहीं किया, जिसने राष्ट्र की सुरक्षा को कमजोर किया। 

आज की स्थिति में, जब भारत और चीन पुराने पेट्रोलिंग पॉइंट्स पर वापस लौटने का प्रयास कर रहे हैं, तो दोनों सेनाओं के बीच की वास्तविकता को देखते हुए यह स्पष्ट है कि धारणाएं और वास्तविकता दोनों अलग हैं। समस्या का समाधान करने के लिए, सटीक सीमा रेखा तय करना आवश्यक है, लेकिन चीन की अनिच्छा से स्थिति जटिल बनी हुई है।

### Chapter

1962 की जंग के संदर्भ में, फॉरवर्ड पॉलिसी के कारण भारत को कई महत्वपूर्ण समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिससे स्पष्ट होता है कि इतिहास से सीख लेना आवश्यक है। ब्रिगेडियर जॉन दलवी की किताब "हिमालयन ब्लंडर" इस विषय पर गहरी जानकारी देती है और इसमें यह बताया गया है कि भारतीय सेना की रणनीतियों में कहां चूक हुई थी। उन्होंने किताब में विस्तार से बताया है कि कैसे राजनीतिक कारणों से सच्चाई को छिपाने का प्रयास किया गया।

मीडिया ने इस स्थिति पर कवरेज करते हुए कई हास्यजनक घटनाओं को उजागर किया, जैसे नेताओं द्वारा एक-दूसरे से मिलने के दौरान की गई हल्की-फुल्की बातचीत। प्रधानमंत्री मोदी की पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने की कोशिशें कई बार आलोचनाओं का शिकार हो चुकी हैं। विशेषकर पाकिस्तान और चीन के मामलों में, जहां बार-बार सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ी हैं। 

प्रधानमंत्री मोदी ने यह समझा कि पड़ोसी देशों के साथ संबंध बनाए रखना अनिवार्य है। हालांकि, पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ अनुभव नकारात्मक रहे हैं, फिर भी उन्होंने अपने कार्यकाल के आरंभ में एक ईमानदार प्रयास किया। भारत-चीन संबंधों को लेकर कई समझौते हुए हैं, जिसमें 1993 में पहली बार चीन के साथ समझौता शामिल है, जिसमें दोनों पक्षों ने LAC का सम्मान करने और सैना की तैनाती को कम करने का निर्णय लिया था। 

इस समझौते में चार प्रमुख बिंदु शामिल थे: LAC का सम्मान करना, सैन्य टकराव से बचना, सैनिकों की संख्या को कम करना और सीमा विवादों का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से करना। यह सभी प्रयास इस दिशा में उठाए गए कदम हैं कि न केवल स्थिति को स्थिर किया जाए, बल्कि भविष्य में संभावित संघर्षों से भी बचा जाए।

### Chapter

1993 और 1996 के बीच, भारत और चीन ने कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें सीमाओं पर तनाव कम करने के लिए ठोस कदम उठाए गए। 2003 में, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में, चीन ने सिक्किम को भारत का हिस्सा मानने पर सहमति व्यक्त की, जो एक महत्वपूर्ण कदम था। 2005 में, राजनीतिक मार्गदर्शिकाएँ बनाने के लिए नए समझौते किए गए ताकि सीमा विवाद का समाधान कूटनीतिक तरीके से हो सके। 2013 में, बॉर्डर डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट को लागू किया गया, जिससे सैन्य संवाद और प्रबंधन को मजबूत करने की कोशिश की गई। 

हालांकि, चाइना ने इन सभी समझौतों का उल्लंघन किया है, जिससे स्थिति गंभीर हो गई। यह भी बताया गया है कि चाइना ने अपने सैनिकों को भारत की सीमा पर बिना हथियारों के भेजने की बात भी स्वीकार की थी, जिससे झड़पें अधिक हो गईं। कूटनीति के माध्यम से सभी मुद्दों का समाधान करने की कोशिश की गई, लेकिन वास्तविकता यह है कि चाइना ने कई बार समझौते तोड़े हैं और अपनी आक्रामक नीतियों का पालन किया है। 

इस बीच, भारत ने अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि चाइना भारत के साथ युद्ध की स्थिति को टालने के लिए प्रयासरत है, क्योंकि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के सामने आने पर उसका सामना मुश्किल हो सकता है। 2025 में, जब अमेरिका चाइना के खिलाफ कदम उठाएगा, तब भारतीय स्थिति कितनी मजबूत होगी, यह देखने वाला है। चाइना जानता है कि भारत एक तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था और शक्तिशाली सेना वाला देश है, जिससे उसकी समस्याएँ और बढ़ सकती हैं।

### Chapter

चाइना की रणनीति यह है कि भारत के साथ कम से कम लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर शांति स्थापित की जाए, ताकि अन्य देश, जैसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, और जापान, चाइना पर दबाव डालने के लिए स्वतंत्र न हो सकें। चाइना की सोच यह है कि यदि वह भारत के साथ मामलों को सुलझा ले, तो वह अन्य चुनौतियों से निपटने में अधिक सक्षम होगा। हालाँकि, भारत को चाइना पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसकी मंशा हमेशा संदिग्ध रही है। 

ब्रिक्स के संदर्भ में, हाल की स्थितियों ने इस संगठन में सहभागिता की नई गेमप्लानिंग की ओर इशारा किया है। भारत ने दूसरे देशों के साथ सहयोग को बढ़ावा देने की कोशिश की है, खासकर ईरान के साथ, जो पाकिस्तान के लिए नया चिंता का विषय बन सकता है। दुसरी ओर, पाकिस्तान ब्रिक्स का हिस्सा बनने की कोशिश कर रहा है, जबकि भारत इस संगठन के सदस्यों में एक महत्वपूर्ण स्थिति रखता है। 

आज, ब्रिक्स के नए सदस्य, जैसे कि इजिप्ट, इथियोपिया, ईरान, और सऊदी अरब, एक औसत अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संरक्षण की प्राथमिकता को दर्शाते हैं। इन देशों का सम्मिलन भारत की बढ़ती हुई शक्ति के लिए महत्वपूर्ण है। चाइना की विस्तारवादी नीतियों के बीच, भारत के लिए यह बेहद जरूरी हो गया है कि वह अपनी स्थिति को मजबूती से बनाए रखे और किसी भी अंतरराष्ट्रीय विवाद में सामरिक रूप से संतुलित रहे। 

इस वक्त भारत और चाइना के रिश्ते सचमुच जटिल हैं, जहां भारत को आत्मनिर्भरता और कूटनीति के जरिए अपने हितों की रक्षा करनी होगी। भारतीय दृष्टिकोण आगे बढ़कर न केवल अपने बल्कि पूरे क्षेत्र और विश्व के लिए हितकारी साबित हो सकता है।

### Chapter

चीन की सीमा स्थिति पर चर्चा के दौरान, यह स्पष्ट हुआ है कि भारत को अपनी रणनीतियों को और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से अपने सैन्य और कूटनीतिक प्रयासों में। वीडियो में दर्शकों को धन्यवाद देते हुए, सुझाव दिया गया है कि उन्हें इसे लाइक करना चाहिए और चैनल को सब्सक्राइब करना चाहिए, जिससे यह दिखाया गया है कि जानकारियों के प्रसार में सामूहिक भागीदारी महत्वपूर्ण है। 

इस संदर्भ में, भारतीय सांस्कृतिक पहचान और एकता पर जोर दिया गया है, जैसे कि "जय हिंद" और "वंदे मातरम" के माध्यम से। यह न केवल राष्ट्रीयता को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्मरण कराता है कि एक मजबूत और एकजुट भारत ही अपने समक्ष चुनौतियों का सामना कर सकता है। भारत की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के तौर पर, ऐतिहासिक संघर्षों की याद दिलाते हुए, आज की स्थिति में भी वही साहस और प्रतिबद्धता बनी रहनी चाहिए।

इसलिए, सभी भारतीयों को चाहिए कि वे अपनी मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों को समझें और सामूहिक रूप से आगे बढ़ें, ताकि भारत की सीमाओं को सुरक्षित रखा जा सके और उसकी शक्ति को विश्व स्तर पर स्थापित किया जा सके। यह न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामरिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)